Akhiil Bhartiya Yuva Sakti Sanghatan

हुए पैदा तो धरती पर हुआ आबाद हंगामा
जवानी को हमारी कर गया बर्बाद हंगामा
हमारे भाल पर तकदीर ने ये लिख दिया जैसे
हमारे सामने है और हमारे बाद हंगामा

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए

Tuesday, 13 December 2011

गैर-सरकारी संगठनों का भ्रष्टाचार

समाजोत्थान के निमित्त विभिन्न क्षेत्रों में सामाजिक रूप से दबे, पिछड़े, अनाथ और निराश्रित लोगों के कल्याण का दंभ भरने वाले गैर-सरकारी संगठनों की विश्वसनीयता का सवाल आज बहस का बड़ा मुद्दा है. जिस तेजी से इनकी असलियत जनता के सामने आ रही है, उससे साबित हो जाता है कि ऐसे ज्यादातर संगठनों का ध्यान धर्नाजन की ओर अधिक है और कई तो लूट- खसोट की एजेंसी भर बन कर रह गए हैं. इसके चलते आज ये संगठन सेवा के केन्द्र नहीं, बल्कि व्यवसाय के अड्डे बनकर रह गये हैं. देश में तकरीब तीन करोड़ तीस लाख गैर-सरकारी संगठन पंजीकृत हैं. इनमें अनेक संगठन कागजों पर ही चल रहे हैं और सरकारी या फंडिग एजेन्सियों के अधिकारियों की मिलीभगत से अरबों की राशि की बंदरबांट हो जाती है. संगठनों की करीब पचास फीसद राशि का इस्तेमाल सही मद में होता ही नहीं है. जबकि इन्हें दान या सहायता देने वाले देश इस मुगालते में रहते हैं कि उनके द्वारा दिये गए धन का पूरी तरह सही लोगों की खातिर इस्तेमाल हो रहा है. आज अनेक राजनीतिक दलों के छुटभइये से लेकर बड़े नेता तक एनजीओ चला रहे हैं और अपनी पहुंच के बलबूते अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन, इंग्लैंड, जापान, कनाडा,नार्वे, जर्मनी, रूस, आस्ट्रेलिया समेत अनेक देशों से शिक्षा, बाल-विकास, बंधुआ मजदूरी, पर्यावरण, धर्म प्रचार, साफ-सफाई, बीज, सुलभ शौचालय, दहेज उन्मूलन, अंधविश्वास व कुप्रथा तोड़ने और बाल श्रम उन्मूलन आदि कार्योँ के लिए अरबों की राशि ला रहे हैं. कहा जा रहा है कि अस्सी फीसद संगठन इस धंधे के जरिये अपने परिवार का भविष्य संवार रहे हैं. देश में कुल पंजीकृत तीन करोड़ तीस लाख संस्थाओं में से तकरीबन 45 फीसद का पंजीयन सन 2000 के बाद हुआ. इसमें महाराष्ट्र ने कीर्तिमान बनाया है. वहां 4.8 लाख पंजीकृत संस्थाएं हैं जबकि आंध्र में 4.6 लाख और राजस्थान में तकरीब एक लाख हैं. इनके अलावा उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, तमिलनाडु व गुजरात में अस्सी फीसद पंजीकृत संस्थाएं हैं. ये सभी संस्थाएं समाज व स्वयं का कितना हित कर रही हैं, यह इनके आकाओँ-स्वामियों के स्तर, उनकी अदृश्य अकूत संपत्ति, पारिवारिक सदस्यों के नाम पर व फर्जीवाड़े के रूप में खरीदी संपत्ति से लगाया जा सकता है. यही नहीं ये सालाना इनकम टैक्स रिटर्न का खुलासा करने के लिए भी बाध्य नहीं है. संयुक्त राष्ट्र और विश्वबैंक द्वारा समाज के विभिन्न वर्गों-क्षेत्रों के कल्याण के लिए इन्हें जो आर्थिक सहायता दी जाती है, उसमें इनकी भागीदारी सुनिश्चित करने का निर्देश होता है. गृह मंत्रालय के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 2005-06 और 2006-07 के वित्तीय वर्ष के दौरान इन संस्थाओं को मिलने वाली विदेशी सहायता में तकरीब 55-56 फीसद की बढ़ोतरी हुई और अकेले 2008 में 2.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता मिली. दरअसल विदेशों से मिलने वाली इस सहायता के लोभ में ही लूट-खसोट का गोरखधंधा शुरू होता है. कुछ समय पहले केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की स्वायत्त इकाई काउंसिल फॉर एडवांसमेंट ऑफ पीपुल्स एक्शन एंड रूरल टेक्नालॉजी (कपार्ट) ने इस तरह मिले धन का दुरुपयोग करने के आरोप में देश भर में तकरीब एक हजार एनजीओ को न केवल काली सूची में डाल दिया है, बल्कि भविष्य में उनके द्वारा काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया है. बहरहाल, आज अधिसंख्य के प्रति जनता में अच्छी धारणा नहीं है. हां, कुछ हैं जो सरकारी अनुदान या विदेशी सहायता के बगैर जी-जान से समाज सेवा में जुटे हैं. कुछ संस्थाएं हैं विदेशी संस्थाओं और सरकार से मिले अनुदान का सही इस्तेमाल करती हैं लेकिन उनका न सही मूल्यांकन हो पाता है और न पहचान. कहने को तो इनकी कार्यप्रणाली पर नजर रखने के लिए क्रेडिबिलिटी एलायंस जैसे संगठन मौजूद हैं जिन्होंने ऐसे संगठनों पर पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए गाइडलाइंस भी तैयार की हैं लेकिन उन पर अमल कौन करता है? एनजीओ को जो विदेशी धन सहायता के रूप में मिलता है, उसकी निगरानी के लिए विदेशी दान नियमन कानून है. फिर विदेशी सहायता देने वाली संस्थाएं अपने दिए धन के इस्तेमाल की जांच-परख भी करती हैं. लेकिन उन्हें संतुष्ट करने में इन्हें महारथ हासिल है. इस क्षेत्र में विदेशी धन के अलावा सरकारी धन भी बड़ी मात्रा में लगा है. यह राशि लगातार बढ़ती जा रही है क्योंकि इन्हीं संगठनों के माध्यम से अनेक सरकारी कार्यक्रम लागू हो रहे हैं. इसलिए जरूरी है कि इन संगठनों के भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगाया जाए.

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